रविवार, 9 अगस्त 2015

गांवों में अब भी किलोवाट पर भारी पड़ते हैं सेर, पाथा

     गांव में जब मां खेतों में काम करने चली जाती थी तो हर पहाड़ी पुत्र की तरह कई बार घर में खाना या यूं कहें कि दाल चावल बनाने की जिम्मेदारी मेरी होती थी। अपनी चचेरी बहन से खाना बनाना भी सीख लिया। मां ने चावल की माप बता दी थी। वही मुट्ठी, तामी, माणा या सेर के हिसाब से। इसके बाद मां ने उंगलियों के माप से भी बता दिया था कि भात बनाने के लिये उंगलियों की इस लाइन तक पानी होना चाहिए। पिताजी को भूमि मापन की अच्छी जानकारी थी। अगर किसी ने अपना 'वाडु' (दो परिवारों के खेतों को अलग अलग करने के लिये बीच में में बड़ा सा पत्थर रोप दिया जाता है जिसे वाडु कहते हैं) दूसरे खेत की तरफ खिसकाकर अपना हिस्सा बढ़ा दिया तो झगड़ा हो जाता था। पिताजी जब न्याय पंचायत स्योली के सरपंच थे तो उन्होंने इस तरह के कुछ मामलों को सुलझाया भी था। अक्सर मैंने उन्हें कहते हुए सुना था कि फलां व्यक्ति का खेत इतने नाली या बिस्वा है। उत्तराखंड में माप के लिये अब भी माणा, सेर या नाली, बिस्वा चलता है। आओ आज इसी पर चर्चा करें। 

अनाज के पैमाने ... माणा से लेकर मण तक 

    त्तराखंड में पहले अनाज तोलने के लिये तराजू नहीं हुआ करते थे और इसलिए ग्राम या किलो जैसे माप लोग नहीं जानते थे। अनाज, तेल, घी, दूध आदि तोलने के लिये अलग से पैमाने होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह चलन अब खत्म हो गया है। अब भी माणा, पाथा, नाली, सेर, दूण आदि चलता है हालांकि इनको अब किलो में तोला जा रहा है। पहले तोल के लिये खास तरह के बर्तन बने होते थे। इनमें जितना अन्न, तेल आदि समा जाए उसी तौल के अनुसार इनके नाम भी पड़ गये। माणा या माणू, पाथा या पाथू आदि। ये तांबा, लोहे, पीतल, लकड़ी और बांस या रिंगाल के बनाये जाते थे। उत्तराखंड में कई घरों में अब भी तौल के ये बर्तन मिल जाएंगे। लोहे या पीतल के बने पाथे बेलनाकार होते हैं। पाथे का निर्माण वही कारीगर करता था जिसका उसे पूरा ज्ञान हो। इसको सुंदर बनाने के लिये पहले इस पर नक्कासी भी की जाती थी। टांगने के लिये कड़े भी लगा दिये जाते थे। आजकल कुछ अन्य बर्तनों ने भी माणा और पाथा की जगह ले लिया है। आपने उन सफेद मग को देखा होगा जो सेना में जवानों को मिलते थे। उन्हें गांवों में एक माणी या माणु या माणा के रूप में उपयोग किया जाता है। इसी तरह से वनस्पति घी या किसी अन्य सामान का एक किलो का डिब्बा सेर का रूप ले लेता है।
माणा या माणी और सेर के लिये इनका भी प्रयोग किया
 जाता है। फोटो : प्रियंका घिल्डियाल खंतवाल
     अब पहले बात करते हैं अनाज तोलने के माप को लेकर। अनाज को तोलने को सबसे छोटा माप मु्ट्ठी होता था यानि एक सामान्य व्यक्ति की मुट्ठी में जितना अनाज आ जाए उतना एक मुट्ठी हुआ। कुछ लोग मुट्ठी के बजाय अंज्वाल (दोनों हाथों को खोलकर ​उसमें जितना अनाज आ जाए) का भी उपयोग करते है। तीन मुट्ठी को एक पाव मान लिया जाता था जिसे तामी कहा जाता था। आज भी गांव की शादियों या इस तरह के काम जहां काफी लोगों के लिये भोजन तैयार किया जाना हो, सर्यूल (मुख्य खानशामा) सेर, पाथा आदि के हिसाब से ही दाल और चावल बनाता है। आटा भी पाथा के पैमाने से ही दिया जाता है। बेटियों को मायके से विदाई के वक्त दिया जाने वाले अनाज को दोण इसलिए कहा गया क्योंकि उसका वजन एक दोण यानि 32 किलो होता था। यही नहीं पहले लोग उधार भी सेर या पाथे से नापकर देते थे। यदि किसी को दस पाथा अनाज दिया जाता था तो वह ब्याज सहित उसे लौटाता था। यानि वापस करते समय वह दो तीन पाथा अधिक देता था। पाथा, सेर में तब तक अनाज डाला जाता है जब तक कि उसमें एक भी अतिरिक्त दाना डालने की जगह नहीं ​बच जाए। इन पैमानों को आप इस तरह से समझ सकते हैं। ....

            तीन मुट्ठी बराबर एक तामी या एक पाव
            दो तामी बराबर एक माणा या वर्तमान समय का आधा किलो।
            दो माणा या वर्तमान समय का एक किलो बराबर एक सेर या एक कूड़ी
            दो सेर या चार माणा बराबर एक पाथा।
            16 पाथा या 32 सेर बराबर एक दूण या दोण
            40 सेर या एक बिशोथा या बीसी बराबर एक मण
            16 मण या 20 दूण बराबर एक खार

भूमि के नाप : ज्यूला गया तो आया नाली, बिस्वा

    त्तराखंड में अब भूमि का नाप नाली, बिस्वा, बीघा और एकड़ आदि में किया जाता है। अब दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों की तरह फुट, गज, मीटर आदि भी प्रचलन में आ गये हैं लेकिन पहले चौखूंटा ज्यूला या चक्र ज्यूला में नाप लिया जाता था। चौखुंटा ज्यूला में माप का सबसे छोटा पैमाना लेमणी होता था यानि इतनी भूमि की उसमें एक दोण बीज बोया जा सके। इसी हिसाब से आगे भी भूमि का नाप तय कर दिया गया था। ज्यूला सबसे बड़ी माप मानी जाती थी जो 16 दोण बीज के बराबर मानी जाती थी। चक्र ज्यूला में एक ज्यूला चार दोण बीज के बराबर होता था।
      समय के साथ उत्तराखंड में भूमि के नाप के पैमाने भी बदलने लगे। ज्यूला की जगह बीसी, बिस्वा, बीघा और एकड़ ने ले ली। महान इतिहासकार पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने अपनी पुस्तक 'गढ़वाल का इतिहास' के पेज 244 में बीसी बनाने का तरीका इस तरह से बताया है, '' खेत की लंबाई के गजों की चौड़ाई के गजों से गुणा करके गुणनफल को 240 से भाग देकर जो निकले वह नाली है। अर्थात 240 वर्ग गज की एक नाली, 20 नाली की एक बीसी होती है। ''
     इसके बाद मुट्ठी, नाली आदि में ही भूमि का नाप होने लगा। सोलह मुट्ठी में एक नाली होती है। वर्तमान समय के हिसाब से यदि इस नाप तो देखें तो एक नाली लगभग 240 वर्ग गज होता है। अब बिस्वा का प्रचलन है। उत्तराखंड में एक बिस्वा लगभग 48.4 वर्ग गज का होता है। 20 बिस्वा का एक बीघा होता है। (भारत में प्रत्येक जगह भूमि नाप के अलग अलग तरीके हैं। राजस्थान यही एक बिस्वा लगभग 96 वर्ग गज हो जाता है। कई जगह पक्का बिस्वा और कच्चा बिस्वा चलता है और उसी हिसाब से उसके नाप भी बदल जाते हैं।) बीस बिस्वा का एक बीघा होता है।
   त्तराखंड में पहले धातुओं को तोलने के भी अपने पैमाने थे। अब सोने के भाव ग्राम से तय होते हैं लेकिन पहले 'तोला' और 'पल' से इन्हें तोला जाता था। पांच तोले का एक पल होता था। चांदी तोलने के लिये रत्ती और माशा होते थे। आठ रत्ती का एक माशा होता है और 12 माशे का एक काच या तोला होता है।
     यहां तक कि घास और लकड़ी के लिये भी अलग अलग पैमाने होते है। घास में अंग्वाल से लेकर पूला या पूली, बिठग और पलकुंड तक का पैमाना है। किसी कार्य में कितनी लकड़ियां लगेंगी इसका अनुमान 'कठगल' से लगाया जाता है। कठगल लकड़ियों के ढेर को कहते हैं। 
    इसके अलावा हर वस्तु को मापने या नापने के कुछ और भी तरीके हैं या होंगे। आपको यदि पता हो तो कृपया नीचे टिप्पणी वाले कालम में उनका जिक्र जरूर करें। घसेरी को आपकी टिप्पणियों का इंतजार रहेगा। (धर्मेन्द्र पंत)

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आधुड़ी, सेर, माण, पाथ, दूण, और बिस्वां, नाळी आदि सब पुरानी बातें हमारे साथ ही समाप्त हो जायेंगी, क्योंकि आजकल गांव में रहने वाली पीढ़ी को भी ये पैमाने पता ही नहीं है, तो प्रवासी पीढियां कहां याद रखेंगी।

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  2. आपने अपने इस आर्टिकल में सोना और चांदी के वजन से संबंधित बहुत अच्छी जानकारी दिया है. आपको देखकर मैं ब्लॉगिंग शुरू किया है. आपके लेख से प्रभावित होकर मैंने bhari gram से संबंधित एक लेख लिखा है. कृपया मेरे वेबसाइट विजिट करें. कोई कमी हो तो कमेंट करके जरूर बताइएगा.
    धन्यवाद.

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