मंगलवार, 28 जून 2016

गढ़वाल का कौसानी है खिर्सू

खिर्सू में वन विभाग  का मनोरंजन केंद्र हर सैलानी को लुभाता है। 

      बांज, देवदार, चीड़, बुरांश के पेड़ों से भरे जंगल के बीच बसा छोटा सा गांव जहां शोर के नाम पर सुनाई देता है केवल पक्षियों का कलरव। सामने नजर दौड़ाओं को दिखती है हिमाच्छादित चोटियों की मनोरम श्रृंखला और मौसम ऐसा कि मई . जून में स्वेटर पहनने की नौबत पड़ सकती है। इस जगह का नाम है खिर्सू जो लगभग 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और जहां आपको अन्य पर्यटन स्थलों की तरह चकाचौंध तो नहीं मिलेगी लेकिन यहां आकर लगेगा कि आप प्रकृति के बेहद करीब हैं। खिर्सू में उत्तराखंड सरकार के तमाम 'प्रयासों' के बावजूद सुविधाओं का अभाव भी हो सकता है लेकिन प्रकृति का करीबी अहसास आपको इनकी कमी नहीं खलने देगा। 
      खिर्सू के बारे में बचपन से सुना था लेकिन तब यह महज एक गांव हुआ करता था जिसे खास तवज्जो नहीं दी जाती थी। बुवाखाल से पौड़ी अनगिनत बार गया लेकिन कभी खिर्सू का रूख नहीं किया। इस बार जब गर्मियों में पहाड़ दौरे पर निकला तो खिर्सू सूची में पहले स्थान पर था। पौड़ी से महज 19 किमी की दूरी पर स्थित तो फिर जाना तो बनता था। तिस पर गणेश भैजी (श्री गणेश खुगशाल 'गणी') का साथ मिल गया तो फिर यात्रा का आनंद दुगुना हो गया। खिर्सू में वन मनोरंजन केंद्र में 'घसेरी' के एक सुधी पाठक श्री देवेंद्र बिष्ट से भी मुलाकात हुई जो अपने दोस्तों के साथ प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताने के लिये यहां पहुंचे थे। 

घसेरी के पाठक देवेंद्र बिष्ट (बायें से दूसरे) अपने साथियों के साथ। उनके पीछे है खिर्सू का ऐतिहासिक स्कूल जिसे अंग्रेजों ने तैयार किया था। गढ़वाल के सबसे पुराने स्कूलों में से एक। 
      खिर्सू असल में एक गांव है जिसे उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया। रिपोर्टों के अनुसार इसके विकास पर करोड़ों रूपये खर्च भी हुए लेकिन जमीनी हकीकत अलग तरह की कहानी बयां करती है। पर्यटकों को लुभाने के लिये आज भी खिर्सू में वही सब कुछ है जो प्रकृति की देन है। सरकार कहती है कि यहां जमीन नहीं होने के कारण विकास नहीं हो पा रहा है। यदि किसी तरह के विकास के लिये जंगलों या प्रकृति से छेड़छाड़ होती है तो फिर खिर्सू का वर्तमान स्वरूप ही ठीक है लेकिन इसमें भी काफी सुधार की गुंजाइश है। यहां पार्किंग की उचित व्यवस्था भी की जानी चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि यदि खिर्सू जाएं तो गाड़ी में डीजल या पेट्रोल पर्याप्त मात्रा में हो क्योंकि यह सबसे पास का पेट्रोल पंप पौड़ी में है।

खिर्सू में हैं ठहरने के कम विकल्प


     ब हम खिर्सू में ठहरने की व्यवस्था की बात करें तो विकल्प बहुत कम हैं। इनमें गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस है जिसकी आनलाइन बुकिंग होती है और गर्मियों के समय में इसमें भी आसानी से कमरे नहीं मिलते हैं। यहां कमरों की कीमत 800 से 1600 रुपये प्रति दिन है। वन विभाग का विश्राम भवन है जिसे 1913 में बनाया गया था। इसमें अंग्रेजों के जमाने की साज सज्जा भी दिखायी देती है। हाल में 42 लाख रुपये की लागत से दो बम्बू हट भी बनाये गये हैं। यदि आप वन विभाग में काम करते हैं तो आपको सस्ती दर पर ये कमरे मिल जाएंगे। सरकारी कर्मचारियों के लिये भी कुछ छूट है लेकिन सामान्य नागरिकों अंग्रेजों के जमाने के भवन में एक रात के लिये 1000 रुपये जबकि बम्बू हट में 1250 रुपये खर्च करने होंगे। विदेशी पर्यटकों के लिये यह कीमत दोगुनी क्रमश: 2000 और 2500 रुपये हो जाती है। 

खूबसूरत बंबू हट। इसमें फर्नीचर भी बांस से तैयार किया गया है। 
       इन कमरों की बुकिंग पौड़ी में जिला वन अधिकारी (डीएफओ) कार्यालय से की जाती है। लेकिन यहां ठहरने में भोजन की दिक्कत है क्योंकि यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस की तरह खाने की व्यवस्था नहीं थी। पहले यहां सस्ती दरों पर घर जैसा भोजन भी मिल जाता था लेकिन पता चला कि जो मुख्य खानसामा था उसे कोई वन अधिकारी अपने साथ ही ले गया और तब से भोजन व्यवस्था का काम ठप्प पड़ गया। इनके अलावा एक दो निजी होटल भी हैं।  इनमें बद्री विशाल होटल और होटल ताज हिमालय शामिल है। घसेरी के जरिये मित्र बने देवेंद्र बिष्ट बद्री विशाल में ठहरे थे जहां उन्होंने 1500 रुपये में कमरा लिया था। वे वहां की व्यवस्था से खुश थे। हाल में खिर्सू का दौरा करने वाले श्री रामकृष्ण घिल्डियाल ने बताया कि उन्हें इसी होटल में अच्छा कमरा मिल गया था। यह अलग बात है कि उन्होंने खुद को गढ़वाली के रूप में बेहतर तरीके से पेश किया। यहां पानी की कमी है और सुबह नहाने के लिये गर्म पानी चाहिए तो 30 रुपये देकर गर्म पानी से भरी बाल्टी मिल जाएगी। पौड़ी में ठहरने के लिये अच्छे होटल हैं और यहां ठहरकर भी दिन में खिर्सू का आनंद लिया जा सकता है।

प्रांजल और प्रदुल ने मनोरंजन पार्क में पूरी मस्ती की। 

इन स्थानों की कर सकते हैं सैर 


       खिर्सू एक रमणीक स्थल है। आप जंगल से गुजरती लगभग सुनसान सड़क पर पैदल चलकर आनंद ले सकते हैं। यहां से आप हिमालय की लगभग 300 ज्ञात और अज्ञात चोटियों को निहार सकते हैं। इनके अलावा कुछ ऐसी जगह हैं जहां पर आप कुछ समय बिता सकते हैं। ऐसा ही एक स्थान है वन विहार का मनोरंजन केंद्र या पार्क। जंगल के बीच में पार्क बच्चों को जरूर लुभाता है क्योंकि वह पर झूले भी लगे हुए हैं। यह अलग बात है कि उनका रखरखाव अच्छी तरह से नहीं किया जा रहा है। इसी पार्क में पहले नेचर कैंप भी लगाया जाता था। वहां अब भी इन टैंट के अवशेष देखे जा सकते हैं। इस तरह के कैंप पर्यटकों का ध्यान आकर्षित कर सकते थे। खिर्सू से यदि ट्रैकिंग करनी है तो फिर काफी ऊंचाई पर स्थित फुरकंडा प्वाइंट है। यहां से खिर्सू और आसपास के गांवों का विहंगम दृश्य दिखायी देता है। यहां आप अपनी गाड़ी से भी जा सकते हैं। देवभूमि में देवताओं का दर्शन करने हैं तो घंडियाल मंदिर है जो काफी मशहूर है। खिर्सू से लगभग तीन किमी दूर उल्कागढ़ी में उल्का देवी का मंदिर है। कभी गढ़वाल की राजधानी रही देवलगढ़ यहां से 16 किमी दूर है। इसके अलावा आसपास के कुछ गांव हैं,  जिनका भ्रमण किया जा सकता है। चौखंबा से हिमालय का मनोहारी दृश्य देखा जा सकता है। खिर्सू से चौबट्टा तक जंगल के बीच दो किमी की सड़क जंगल के बीच गुजरती हैं। पर्यटक अक्सर यहां घूमने का आनंद उठाते हैं।  खिर्सू और बुवाखाल के बीच पड़ने वाले कुछ स्थलों से बुरांश का जूस भी खरीदा जा सकता है। 

जंगल में शिविर सैलानियों को जरूर पसंद आएगा। बेहतर रखरखाव नहीं होने के कारण अब ऐसे शिविर नहीं लगाये जाते। टैंट से बने शिविरों की स्थिति बदतर हो रखी है। 

 कब और कैसे जाएं खिर्सू 

     खिर्सू जाना हो तो गर्मियों का मौसम आदर्श होता है। अप्रैल से जून तक क्योंकि इसके बाद बरसात का मौसम शुरू हो जाता है। वैसे तो पहाड़ बरसात में अधिक लुभावने बन जाते हैं लेकिन इस दौरान सड़कें टूटने का खतरा बना रहता है जबकि सर्दियों में ठंड अधिक रहती है और ऐसे में आप जंगल के बीच सड़क पर टहलने के बारे में नहीं सोच सकते हो। 
    यदि आप दिल्ली से जा रहे हैं तो खिर्सू जाने के लिये दो रास्ते हैं। पहला मार्ग कोटद्वार से सतपुली और बुवाखाल होते हुए और दूसरा ऋषिकेश से देवप्रयाग और पौड़ी होते हुए खिर्सू जाता है। कोटद्वार से खिर्सू की दूरी 115 किमी है जबकि ऋषिकेश से 128 किमी। इन दोनों ही स्थानों से खिर्सू पहुंचने में तीन से चार घंटे का समय लगता है। पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 119 से जुड़ा हुआ है। खिर्सू का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन कोटद्वार जबकि सबसे करीबी हवाई अड्डा जौली ग्रांट है। जौली ग्रांट से ऋषिकेश, देवप्रयाग और पौड़ी होते हुए खिर्सू पहुंचा जा सकता है। 
   मैंने और मेरे परिवार ने तो खिर्सू भ्रमण का पूरा आनंद लिया। आप भी कुछ दिन खिर्सू में बिता सकते हैं। शहरी कोलाहल से दूर एक शांतिप्रिय जगह। आपका धर्मेन्द्र पंत 

© ghaseri.blogspot.in 

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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा sir आपने अपना अनुभव share किया thanks . I hope the area will be developed very soon , so count of visitors can increase

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  2. Aapne bahut sahi likha hai khirsu k bare may kyuki mai bhi khirsu ka hi rahne wala Hu.khirsu ki halat kharab hoti ja rahi hai pahle se adhik.pahle yahan greesmotsav,saradotsav hote they log badi sankya may yahan ate they but ab yahan na hi koi kuch karta hai or na hi government bhyan De rahi hai log bhi palayan kar rahe hain.

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  3. आपने गांव की याद दिला दी। मेरे गांव से कुछ भी खरीदने के लिये पहले खिर्सू ही आना होता था और खिर्सू तक ही मोटर चलती थी। जब अंग्रेजो ने यहां बोर्डिंग स्कूल खोला था तो यह लोकगीत खूब मशहूर हुआ था ... खिर्सू बोर्डिंग लग्यूंछ निरपणि का डांडा ....

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  4. बहुत सुंदर जानकारी भैजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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