शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

रिंगाल : कलम से लेकर कंडी तक

रिंगाल या रिंगलु
       रिंगाल या रिंगलु। उत्तराखंड के लगभग हर बच्चे से लेकर बड़े तक का रिंगाल से जरूर वास्ता पड़ता है। बचपन में रिंगाल की कलम से लिखना और घर में उससे बनी कई वस्तुओं का उपयोग जैसे सुपु, ड्वारा, कंडी, चटाई, डलिया आदि। बचपन में रिंगाल की कलम से लिखने का बहुत शौक था। हम मानते थे कि बांस से बनी कलम की तुलना में रिंगाल की कलम से अधिक अच्छी लिखावट बनती है। गांव में रिंगाल कम पाया जाता था लेकिन हम किसी भी तरह से रिंगाल ढूंढ ही लेते थे। जब बहुत छोटे थे तब पिताजी चाकू से छीलकर उसकी कलम बनाते थे। मैंने अपने गुरूजी (श्री पंचमदास जी) को भी कई बार स्कूल में बच्चों की कलम बनाते हुए देखा था। रिंगाल से मेरा पहला परिचय कलम ने ही करवाया था और कक्षा पांचवीं तक यह रिश्ता बना रहा। वैसे रिंगाल या बांस से बनी तमाम वस्तुएं हम हर रोज उपयोग करते थे। आज हम 'घसेरी' में इसी रिंगाल पर चर्चा करेंगे जो पहाड़ों में रोजगार का उत्तम साधन बन सकता है। 
          रिंगाल को बौना बांस भी कहा जाता है। बौना बांस मतलब बांस की छोटी प्रजाति। बांस के बारे में हम सभी जानते हैं कि यह बहुत लंबा होता है लेकिन #रिंगाल उसकी तुलना में काफी छोटा होता है। बांस जहां 25 से 30 मीटर तक लंबे होते हैं वहीं रिंगाल की लंबाई पांच से आठ मीटर तक होती है। बांस की तरह यह भी समूह में उगता है। यह मुख्य रूप से उन स्थानों पर उगता है जहां उसके लिये पानी और नमी की उचित व्यवस्था हो। यह विशेषकर 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। उत्तराखंड में कई स्थानों पर इसकी व्यावसायिक खेती भी होती है। उत्तराखंड में मुख्य रूप से पांच प्रकार के रिंगाल पाये जाते हैं। इनके पहाड़ी नाम हैं गोलू रिंगाल, देव रिंगाल, थाम, सरारू और भाटपुत्र। इनमें गोलू और देव रिंगाल सबसे अधिक मिलता है। गोलू रिंगाल का वानस्पतिक नाम DREPANOSTACHYUM FALCATUM जबकि देव रिंगाल का THAMNOCALAMUS PATHIFLORUS है। अमेरिका में ARUNDINERIA FALCATA प्रजाति का रिंगाल मिलता है जिसे उत्तराखंड में सरारू नाम से जाना जाता है। इनमें से गोलू रिंगाल अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर मिलता है जबकि देव रिंगाल निचले स्थानों यानि 1000 मीटर की ऊंचाई पर भी पाया जाता है। THAMNOCALAMUS JONSARENSIS यानि थाम भी अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर उगता है। इसे सभी रिंगाल में सबसे मजबूत और टिकाऊ माना जाता है। इसलिए इस रिंगाल की लाठियां बनायी जाती हैं।

बेहद उपयोगी होता है रिंगाल 


सुपु। अनाज से भूसे को अलग करने का उत्तम साधन। फोटो : रविकांत घिल्डियाल
    रिंगाल की कलम का पहले ही जिक्र किया जा चुका है। यह तो इस पौधे का छोटा सा उपयोग है। काश्तकार इससे कई अन्य उपयोगी वस्तुएं तैयार करते हैं। इनमें सुपा या सुपु (अनाज से भूसे को अलग करने के लिये), टोकरी, डोका या ड्वक (घास, चारा, कोदा, झंगोरा जैसे अनाज लाने के लिये), डलिया, बड़ी कंडी, हथकंडी, ड्वारा या नरेला (अनाज रखने के लिये), चटाई, फूलों को इकट्ठा करने के लिये बाल्टी, बक्सा, थाली, फूलदान, कलमदान, कूड़ादान, झाड़ू, ट्रे, पेस्टदान, टेबल लैंप, सोल्टा आदि प्रमुख हैं। घर में चावल साफ करने हैं या झंगोरा सुपु के बिना संभव नहीं हैं। जब चावल ओखली में कूटे जाते हैं तो सुपु की मदद से ही भूसे को अलग किया जाता है। घर में रोटी रखने के लिये अलग से टोकरी होती है जो मुख्य रूप से रिंगाल से ही तैयार की जाती हैं। कंडी से तो कई यादें जुड़ी हैं। खेतों में काम करने वाले के लिये कंडी में खाना रखकर ले जाया जाता है। गांव में 'पैणा' बांटने हैं तो वह भी कंडी में ही रखे जाते हैं। उत्तराखंड में 'दौण कंडी' का प्रचलन वर्षों से चला आ रहा है। कुमांऊ में डलिया को पवित्र माना जाता है। भिटौली त्योहार में मां डलिया में ही बेटी के लिये कपड़े और पकवान रखकर भेजती है। बेटी के घर बच्चा होने पर भी डलिया भेंट करने की परंपरा रही है। 
     कहने का मतलब है कि रिंगाल पहाड़ी लोगों के दैनिक जीवन का अहम अंग रहा है। रिंगाल की पत्तियां भी उपयोगी होती हैं। इनका उपयोग पशुओं के लिये चारे के रूप में किया जाता है। पशु इसकी पत्तियों को बड़े चाव से खाते हैं। खेतों में रिंगाल से बाड़ तैयार की जाती है और सूखने पर इसका उपयोग जलावन के लिये किया जाता है। यहां तक मिट्टी से बने घरों में छत बांस और रिंगाल के बिना तैयार नहीं की जा सकती है। रिंगाल बहुउपयोगी होने के बावजूद सरकारों से उसे शुरू से नजरअंदाज किया। इससे जुड़े कारीगरों को प्रोत्साहित करने की कोशिश नहीं की गयी जबकि यह रोजगार का अच्छा साधन हो सकता था। सरकार को स्थानीय लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये प्रयास करने चाहिए। रिंगाल उद्योग भी इनमें शामिल है। 
     बड़े भाई जितेंद्र मोहन पंत ने बहुत पहले एक कविता लिखी थी। उसमें एक पंक्ति थी 'फिर से तख्ती लिखने को करता है मन'। सच में ढेर सारी यादें जुड़ी हैं रिंगाल की कलम और इससे बनी वस्तुओं से। अभी तो मैं खुद को इन यादों के हवाले कर रहा हूं। आपका  धर्मेन्द्र पंत

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